Japanese devotee of Shiva: करोड़ों का बिजनेस, 15 स्टोर… सब छोड़ा, जापान का अरबपति बना शिवभक्त

Published On: July 27, 2025
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Japanese devotee of Shiva: करोड़ों का बिजनेस, 15 स्टोर... सब छोड़ा, जापान का अरबपति बना शिवभक्त

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Japanese devotee of Shiva: आज के दौर में जहां दुनिया दौलत, शोहरत और भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे भाग रही है, वहीं एक ऐसी अविश्वसनीय और दिल को छू लेने वाली कहानी सामने आई है, जो धर्म, आस्था और त्याग की एक अनूठी मिसाल है। जापान के एक करोड़पति व्यापारी ने अपने करोड़ों रुपये के फले-फूले बिजनेस को एक झटके में अलविदा कहकर खुद को भगवान शिव की भक्ति और सेवा में समर्पित कर दिया है। यह कहानी आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि सच्ची शांति आखिर कहां है?

41 वर्षीय होशी ताकायुकी, जो कल तक टोक्यो में 15 लग्जरी ब्यूटी प्रोडक्ट स्टोर्स के मालिक थे, आज भगवा वस्त्र धारण कर “बाला कुंभ गुरुमुनि” बन चुके हैं। उनकी यह यात्रा भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर एक प्रेरणादायक छलांग है, जो आज हर तरफ सुर्खियां बटोर रही है।


कौन हैं ताकायुकी और क्या है उनकी अविश्वसनीय कहानी?

होशी ताकायुकी उर्फ बाला कुंभ गुरुमुनि, एक 41 वर्षीय जापानी नागरिक हैं, जो कभी एक सफल और बड़े व्यापारिक साम्राज्य के मालिक थे। टोक्यो जैसे आधुनिक शहर में उनके 15 ब्यूटी प्रोडक्ट्स के स्टोर थे, जिससे उन्हें करोड़ों की आमदनी होती थी। लेकिन आज? वह भारत के देवभूमि उत्तराखंड में आत्म-खोज की एक गहरी और पवित्र यात्रा पर निकले भगवान शिव के अनन्य भक्त हैं।

पारंपरिक भगवा वस्त्र पहने और अपने 20 जापानी अनुयायियों के साथ, उन्हें हाल ही में पवित्र कांवड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार से पवित्र गंगा जल लेकर नंगे पैर चलते हुए देखा गया। उनकी भक्ति का आलम यह था कि उन्होंने अपनी कठिन तीर्थयात्रा के दौरान देहरादून में साथी कांवड़ियों और जरूरतमंदों के लिए दो दिनों तक चलने वाले एक विशाल भोजन शिविर का भी आयोजन किया।

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क्यों छोड़ा सब कुछ? वो एक सपना जिसने बदल दी ज़िंदगी

आपके मन में यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि आखिर एक सफल बिजनेसमैन ने अपना सब कुछ क्यों त्याग दिया? इसके पीछे की कहानी किसी चमत्कार से कम नहीं है।

होशी ताकायुकी की इस आध्यात्मिक यात्रा की नींव आज से लगभग 20 साल पहले दक्षिण भारत के तमिलनाडु में पड़ी थी। अपनी एक भारत यात्रा के दौरान, उनका सामना नाड़ी ज्योतिष से हुआ। यह एक प्राचीन सिद्ध पद्धति है, जिसमें ताड़-पत्र की पांडुलिपियों पर लिखे भविष्य को पढ़कर जीवन के रहस्यों को उजागर किया जाता है। माना जाता है कि ये पांडुलिपियां हजारों साल पुरानी हैं और महान संतों द्वारा लिखी गई हैं।

उस नाड़ी ज्योतिष पढ़ने के दौरान, उन्हें कथित तौर पर यह बताया गया कि उनका पिछला जन्म भारत के हिमालयी क्षेत्र में बीता था और हिंदू आध्यात्मिकता का मार्ग अपनाना ही उनकी नियति है। ताड़ के उन पत्तों में साफ-साफ लिखा था – “तुम्हारा पिछला जन्म उत्तराखंड में बीता था।”

इस घटना के कुछ समय बाद, उन्हें एक रहस्यमयी सपना आया, जिसमें उन्होंने खुद को उत्तराखंड के पहाड़ों में स्थित एक छोटे से गांव में देखा। बस, वही एक पल था जिसने उनकी पूरी ज़िंदगी की दिशा और दशा को हमेशा के लिए बदल दिया।


शिव भक्ति का नया रास्ता और बाला कुंभ गुरुमुनि का जन्म

इस दिव्य अनुभव से प्रेरित होकर, श्री ताकायुकी ने एक क्रांतिकारी फैसला लिया। उन्होंने अपना अरबों का व्यापारिक साम्राज्य अपने अनुयायियों को सौंप दिया, एक नई आध्यात्मिक पहचान अपनाई और अपना नाम बदलकर बाला कुंभ गुरुमुनि रख लिया।

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उनकी शिव भक्ति इतनी गहरी है कि उन्होंने:

  • टोक्यो स्थित अपने आलीशान घर को एक पूर्ण शिव मंदिर में बदल दिया है।
  • जापान में ही एक और नए भव्य शिव मंदिर का निर्माण भी करवाया है।
  • अब वे भारत के पुडुचेरी में 35 एकड़ जमीन पर एक विशाल शिव मंदिर बनवाने जा रहे हैं।
  • उनकी योजना जल्द ही देवभूमि उत्तराखंड में भी एक आश्रम खोलने की है।

देवभूमि उत्तराखंड से है गहरा नाता: “मैं अपना गाँव ढूंढ रहा हूँ”

होशी ताकायुकी उर्फ बाला कुंभ गुरुमुनि कहते हैं, “मुझे ऐसा लगता है कि मैंने अपना पिछला जन्म यहीं (उत्तराखंड में) बिताया है। मैं आज भी उन पहाड़ों में अपने उस गांव को खोज रहा हूं, जो मुझे सपने में दिखा था।”

उनके मित्र और लंबे समय से जापान में रह रहे पौड़ी गढ़वाल निवासी रमेश सुंदरियाल बताते हैं कि गुरुमुनि देवभूमि उत्तराखंड से एक गहरा और अलौकिक लगाव महसूस करते हैं। उनका मानना है कि उनका अस्तित्व भारत और विशेषकर हिमालय से जुड़ा हुआ है।

यह कहानी इस बात का जीवंत प्रमाण है कि सच्ची खुशी और शांति भौतिक संपत्ति में नहीं, बल्कि आध्यात्मिक खोज और सेवा में निहित है।

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