In-laws’ Property: भारत देश में बेटियों के पति, यानी दामाद (Son-in-law) को परंपरा से अत्यंत आदर और सम्मान दिया जाता है। उन्हें अक्सर बेटे के समान (Respected Like a Son) इज़्ज़त मिलती है और उन्हें परिवार का एक अभिन्न हिस्सा (Integral Part of Family) माना जाता है। लेकिन, एक महत्वपूर्ण कानूनी सवाल अक्सर उठता है: क्या इस पारिवारिक आदर के साथ दामाद को अपने सास-ससुर की संपत्ति (In-laws’ Property) पर भी कोई अधिकार मिलता है? यह एक ऐसा प्रश्न है जो अक्सर पारिवारिक विवादों (Family Disputes) को जन्म देता है और जिसके कानूनी पहलू जटिल हो सकते हैं। हाल ही में, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने इस संबंध में एक ऐतिहासिक और स्पष्ट आदेश दिया है, जिसने सास-ससुर की प्रॉपर्टी (Mother-in-law Father-in-law Property Rights) में दामाद के हिस्से (Son-in-law’s Share in In-laws’ Property) को लेकर महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण दिए गए हैं।
जानिए क्या था पूरा मामला? मानवीय कहानी और कानूनी दाँवपेंच! (The Full Story: Human Drama and Legal Battle):
यह पूरा मामला भोपाल के निवासी दिलीप मरमठ (Dileep Marmat – Son-in-law) और उनके ससुर नारायण वर्मा (Narayan Verma – Father-in-law, 78) के बीच का था। याचिका में दामाद दिलीप मरमठ ने स्पष्ट कहा था कि उसने इस घर को बनाने के लिए ₹10 लाख (₹10 Lakh Contributed to House) दिए थे। इस दावे के समर्थन में उसने बैंक स्टेटमेंट (Bank Statement Proof) भी प्रस्तुत किए थे।
युगलपीठ (जजों की बेंच) ने जब इस मामले की सुनवाई की, तो इस दौरान पाया कि ससुर नारायण वर्मा ने ही अपनी बेटी ज्योति (Daughter Jyoti) और दामाद दिलीप मरमठ (Son-in-law Dileep Marmat) को अपने घर में रहने की परमिशन (Permission to Stay in In-laws’ House) दी थी। लेकिन यह परमिशन एक अलिखित समझौते (Unwritten Agreement) या समझ पर आधारित थी कि दामाद और बेटी उनके बुढ़ापे में ससुर की देखरेख (Dakhrekh Sasur ki zimmedari) करेंगे।
हालात तब बिगड़ गए जब साल 2018 में एक दुर्घटना में बेटी ज्योति (Daughter Died in Accident) की दुखद मृत्यु हो गई। बेटी की मृत्यु के पश्चात, दामाद दिलीप मरमठ ने दूसरी शादी (Son-in-law Remarried) कर ली। दूसरी शादी के बाद दामाद ने वृद्ध ससुर (Old Father-in-law Neglected) को खाना (Stopped Providing Food) और खर्चा-पानी (Stopped Financial Support) देना बंद कर दिया, जिससे बुजुर्ग नारायण वर्मा जीवन-यापन के लिए मोहताज हो गए।
एसडीएम कोर्ट से हाईकोर्ट तक का सफर! (Journey from SDM Court to High Court):
मामले के मुताबिक, भोपाल निवासी दिलीप मरमठ के ससुर, 78 वर्षीय नारायण वर्मा ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007), जिसे सीनियर सिटीजन्स एक्ट (Senior Citizens Act) भी कहा जाता है, के तहत एसडीएम कोर्ट (SDM Court) में अपील (Appeal in SDM Court) दायर की थी। इस अपील में उन्होंने अपने दामाद द्वारा देखरेख न करने और अपनी संपत्ति खाली करने की मांग की थी।
मामले पर गौर करते हुए, एसडीएम (SDM Order) ने दिलीप मरमठ को ससुर का मकान खाली करने (Order to Vacate House) का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ, दिलीप मरमठ ने कलेक्टर भोपाल (Collector Bhopal Appeal) के सामने अपील दायर की, लेकिन कलेक्टर ने एसडीएम के आदेश को बरकरार रखते हुए उनकी अपील (Collector Rejects Appeal) को खारिज कर दिया। इसके बाद, भोपाल निवासी दिलीप मरमठ ने अपने ससुर का मकान खाली करने के आदेश को चुनौती देते हुए मध्यप्रदेश हाई कोर्ट (MP High Court Challenge) में एक याचिका दायर की। यह एक ऐसा मामला था जो परिवारिक मूल्यों, संपत्ति अधिकारों और बुजुर्गों की सुरक्षा के कानूनी पहलुओं पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालता था।
दामाद की अपील को क्यों खारिज किया गया? युगलपीठ का विस्तृत आदेश (Why Son-in-law’s Appeal Was Rejected? Detailed Order):
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में जब यह मामला पहुंचा, तो चीफ जस्टिस (Chief Justice) की अगुवाई वाली युगलपीठ (Double Bench) ने मामले पर गंभीरता से गौर किया। अदालत ने एक महत्त्वपूर्ण आदेश दिया, जिसमें स्पष्ट कहा गया कि दामाद के खिलाफ माता-पिता के भरण-पोषण अधिनियम (Parents Maintenance Act) के तहत ‘निष्कासन का प्रकरण’ (Eviction Proceedings) चलाया जा सकता है।
- संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम (Property Transfer Act) के तहत नहीं: अदालत ने यह पाया कि इस मामले में प्रॉपर्टी ट्रांसफर अधिनियम (Property Transfer Act) के अंतर्गत संपत्ति का कोई ‘वास्तविक हस्तांतरण’ (No Real Property Transfer) दामाद के नाम पर नहीं किया गया था। ससुर ने केवल अपनी बेटी और दामाद को रहने की अनुमति (Permission to Reside) दी थी, जो मालिकाना हक नहीं देता।
- पीड़ित बुजुर्ग की आवश्यकता (Needs of Elderly Victim): अदालत ने बुजुर्ग ससुर नारायण वर्मा की स्थिति पर भी गौर किया, जो बीएचईएल (BHEL Retired Employee) के एक सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं और अभी उन्हें भविष्य निधि से आंशिक पेंशन (Partial Pension) मिल रही है। ससुर को अपनी बीमार पत्नी (Sick Wife) और बच्चों की देखरेख के लिए (Need House for Care) घर की ज़रूरत है, जो उनके बुढ़ापे में जीवनयापन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इन सभी बातों और तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, युगलपीठ ने दामाद की अपील को खारिज (Son-in-law’s Appeal Dismissed) कर दिया और दामाद (Damad No Right Sasur Property) को एक महीने के भीतर मकान खाली करने (Vacate House within One Month) का स्पष्ट आदेश जारी किया है। इस आदेश ने स्पष्ट किया कि पारंपरिक सम्मान के बावजूद, दामाद को सास-ससुर की संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार (No Legal Right of Son-in-law on In-laws’ Property) नहीं मिलता है, खासकर तब जब वे बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल की अपनी जिम्मेदारी (Duty to Care for Parents-in-law) पूरी न कर रहे हों। यह फैसला बुजुर्गों के संपत्ति अधिकार (Elderly Property Rights) और भरण-पोषण के कानून (Maintenance Laws India) को एक नई दिशा प्रदान करता है, जिससे समाज में बुजुर्गों को न्याय मिल सके।