Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) के एक माननीय जज ने हाल ही में अपने ‘वर्कलोड’ (Workload) या काम के अत्यधिक बोझ का हवाला दिया है। उनके अनुसार, इसी वजह से पिछले साल दिसंबर में ओपन कोर्ट (Open Court) में उनके द्वारा निर्देशित (डिक्टेट किए गए) एक महत्वपूर्ण फैसले (Judgment) को हाई कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड करने में काफी देरी हुई। यह घटना भारतीय न्यायपालिका (Indian Judiciary) में जजों पर पड़ने वाले काम के दबाव को रेखांकित करती है।
न्यायमूर्ति माधव जमदार (Justice Madhav Jamdar) ने 19 दिसंबर 2024 को ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट (Transfer of Property Act) से जुड़े एक मामले में 85 पन्नों का एक विस्तृत फैसला (Detailed judgment) ओपन कोर्ट में सुनाया था। इस केस में मुख्य मुद्दा यह था कि किसी प्रॉपर्टी के ट्रांसफर से संबंधित मुकदमे के लंबित रहने के दौरान (During the pendency of a suit), स्पेसिफिक परफॉरमेंस (Specific performance) के आदेश (डिक्री) से खरीदार (Purchaser) बाध्य होता है या नहीं। अपने फैसले में, न्यायमूर्ति जमदार ने इस महत्वपूर्ण कानूनी पहलू पर अपना निर्णय दिया था।
आमतौर पर, कोर्ट में फैसला सुनाए जाने के तुरंत बाद उसकी कॉपी तैयार करके वेबसाइट पर अपलोड कर दी जाती है ताकि संबंधित पक्ष और आम जनता उसे एक्सेस कर सकें। हालांकि, यह फैसला 19 दिसंबर 2024 को सुनाया गया था, लेकिन इसकी कॉपी (Judgment copy) हाई कोर्ट की वेबसाइट (HC website) पर 30 मई 2025 को ही उपलब्ध हो सकी (अपलोड की गई)। इस तरह, फैसले को अपलोड करने में लगभग छह महीने (Nearly six months delay) की देरी हुई।
जजमेंट की कॉपी अपलोड करने में हुई इस लंबी देरी के लिए, न्यायमूर्ति जमदार (Justice Jamdar) ने अपने आदेश में ही एक असामान्य लेकिन स्पष्टीकरण देते हुए दर्ज किया है कि किस प्रकार वह नियमित कामकाजी घंटों (Regular working hours) से परे बैठकर काम करते हैं। उन्होंने बताया कि वह नियमित रूप से रात 10:30 बजे से 11:30 बजे के बाद अपने चैंबर (Chamber) से निकलते हैं और अपना काम पूरा करने के लिए छुट्टियों (Holidays) में भी आराम नहीं करते। न्यायमूर्ति जमदार ने आगे इस बात पर जोर दिया है कि कैसे उनका काम का शेड्यूल सुबह जल्दी शुरू हो जाता है और वह रोजाना रात 2:00 बजे तक कोई न कोई न्यायिक कार्य (Judicial work) करते रहते हैं, जिसमें केस पेपर पढ़ना और आदेशों पर काम करना शामिल है।
अपने आदेश में, न्यायाधीश ने लिखा, “चूंकि मैं नियमित अदालती घंटों (Regular Court hours) के बाद लगभग हर दिन कम से कम 2 से ढाई घंटे कोर्ट का संचालन कर रहा हूं, लगभग सभी अदालती कार्य दिवसों (Court working days) पर रात 10:30 बजे से 11:30 बजे के बाद दैनिक आदेशों (Daily orders) को सही करने या हस्ताक्षर करने के बाद चैंबर से निकल रहा हूं और अपने निवास पर रात 2:00 बजे तक केस पेपर (Case papers) पढ़ रहा हूं, सुबह कम से कम एक घंटा केस पेपर पढ़ रहा हूं और लंबित काम (Pending work) पूरा करने के लिए लगभग सभी शनिवार/रविवार/छुट्टियों (Saturdays/Sundays/Holidays) पर भी चैंबर में उपस्थित रह रहा हूं, इसलिए इस आदेश को अपलोड करने में देरी हुई है।”
न्यायमूर्ति जमदार द्वारा दिया गया यह स्पष्टीकरण भारतीय अदालतों (Indian Courts), विशेष रूप से हाई कोर्ट (High Courts) में जजों पर काम के अत्यधिक दबाव और लंबित मामलों (Pending cases) की बढ़ती संख्या की गंभीर समस्या को उजागर करता है। यह दर्शाता है कि न्यायाधीशों को किस हद तक अपने स्वास्थ्य और निजी जीवन का त्याग करना पड़ता है ताकि वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें। यह स्थिति न्याय वितरण प्रणाली (Justice delivery system) की दक्षता पर भी सवाल उठाती है और संकेत देती है कि मामलों के त्वरित निपटान (Speedy disposal of cases) के लिए न्यायिक संसाधनों (Judicial resources) और समर्थन प्रणाली को मजबूत करने की तत्काल आवश्यकता है। यह कानूनी समाचार (Legal News) न्यायपालिका के भीतर की वास्तविकताओं पर प्रकाश डालता है।