High Court Decision : ससुर की संपत्ति में दामाद का कितना अधिकार? हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

ससुर की संपत्ति में दामाद का कितना अधिकार? हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

High Court Decision : भारतीय अदालतों में संपत्ति से जुड़े मामले आए दिन सामने आते रहते हैं, और इनमें पारिवारिक रिश्तों के बीच उलझे विवाद भी शामिल होते हैं। ऐसा ही एक दिलचस्प और महत्वपूर्ण मामला हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (MP High Court) में आया, जहां एक दामाद (Son-in-law) ने अपने ससुर की संपत्ति (Father-in-law’s Property) में अपना अधिकार मांगते हुए याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए एक अहम फैसला सुनाया है, जिसने ससुर की संपत्ति में दामाद के अधिकार को लेकर स्थिति साफ कर दी है।

आम तौर पर, पिता की संपत्ति (Father’s Property) में सभी बच्चों, चाहे वे बेटे हों या बेटियां, को कानूनी रूप से बराबर का अधिकार (Equal Rights) प्राप्त होता है। लेकिन अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि क्या दामाद का अपनी पत्नी के पिता (ससुर) की संपत्ति पर कोई हक होता है? मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के इस फैसले से इस सवाल का जवाब मिल गया है।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में क्या था मामला?

यह मामला भोपाल के एक निवासी से जुड़ा था। उस व्यक्ति ने अपने ससुर के मकान (Father-in-law’s House) को खाली कराने के एसडीएम (SDM) कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

दरअसल, ससुर ने ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007’ (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) के तहत एसडीएम कोर्ट में अपील की थी। उन्होंने बताया था कि उन्होंने अपनी बेटी और दामाद को इस शर्त पर अपने घर में रहने की इजाजत दी थी कि वे बुढ़ापे में उनकी और उनकी बीमार पत्नी की देखभाल करेंगे।

क्या हुआ कहानी में ट्विस्ट?

याचिकाकर्ता दामाद ने कोर्ट में दावा किया कि उन्होंने मकान के निर्माण के लिए ₹10 लाख का योगदान दिया था और सबूत के तौर पर बैंक स्टेटमेंट (Bank Statement) भी पेश किया।

लेकिन ससुर ने कोर्ट को बताया कि 2018 में एक दुर्घटना में उनकी बेटी (यानी याचिकाकर्ता की पत्नी) की मृत्यु हो गई। बेटी के निधन के बाद दामाद ने दूसरा विवाह (Second Marriage) कर लिया और अपने बूढ़े और बीमार ससुर-सास की देखभाल करना बंद कर दिया।

कोर्ट ने किसके पक्ष में सुनाया फैसला?

मामले की गंभीरता और तथ्यों को सुनने के बाद, हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण अधिनियम, 2007 के तहत दामाद के खिलाफ बेदखली (Eviction) का मामला चलाया जा सकता है, खासकर तब जब उसने देखभाल का वादा पूरा न किया हो। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि संपत्ति का कोई औपचारिक हस्तांतरण (Formal Property Transfer) दामाद के नाम पर नहीं हुआ था।

पीड़ित ससुर एक सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं और उन्हें अपनी बीमार पत्नी और बच्चों की देखभाल के लिए इस मकान की सख़्त ज़रूरत है। कोर्ट ने माना कि कानून का उद्देश्य वरिष्ठ नागरिकों को सुरक्षा और सहारा देना है।

इन सभी बातों पर विचार करते हुए, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दामाद द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया और एसडीएम कोर्ट द्वारा घर खाली कराने के पहले के आदेश को बरकरार रखा। कोर्ट ने दामाद को 30 दिन के भीतर मकान खाली करने का आदेश दिया।

इस फैसले से यह साफ हो गया है कि ससुर की स्वयं अर्जित (Self-Acquired) या पुश्तैनी संपत्ति में दामाद का अपनी पत्नी के माध्यम से या स्वयं कोई सीधा और कानूनी अधिकार नहीं होता है, खासकर अगर संपत्ति उसके नाम पर हस्तांतरित न की गई हो। यदि दामाद अपने ससुर के घर में रह रहा है और वह अपने वादे या देखभाल की जिम्मेदारी को पूरा नहीं करता है, तो वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत उसे घर खाली करने के लिए कहा जा सकता है। यह फैसला उन सभी वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक राहत है जो अपनी संपत्ति में सुरक्षित महसूस करना चाहते हैं।

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