How to say Sorry: 'सॉरी' कहने का सही तरीका क्या है? रिसर्च ने खोला राज, बताया कैसे बोलें कि सामने वाला तुरंत हो जाए इंप्रेस

How to say Sorry: ‘सॉरी’ कहने का सही तरीका क्या है? रिसर्च ने खोला राज, बताया कैसे बोलें कि सामने वाला तुरंत हो जाए इंप्रेस

How to say Sorry: कई बार जब हमसे कोई गलती हो जाती है और हमें किसी से माफ़ी माँगनी पड़ती है, तो सबसे बड़ी मुश्किल यह आती है कि ऐसे सही शब्द कैसे चुनें जिनसे सामने वाले को वाकई यह महसूस हो कि आप दिल से अपनी गलती मान रहे हैं और पछता रहे हैं। ‘सॉरी’ बोलना तो आसान है, लेकिन उसे इस तरह कहना कि उसका असर हो, थोड़ा मुश्किल हो सकता है।

लेकिन क्या आपको पता है कि आप माफ़ी माँगते समय जिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, खासकर उन शब्दों की ‘लंबाई’, इस बात पर बहुत असर डालती है कि आपकी माफ़ी कितनी सच्ची और असरदार मानी जाएगी? हाल ही में हुई एक रिसर्च ने इस बारे में कुछ बेहद दिलचस्प और चौंकाने वाली बातें सामने रखी हैं।

माफ़ी माँगने के बाद दोनों को बेहतर लगता है – रिसर्च कहती है!

रिसर्च बताती है कि भले ही लोग अक्सर माफ़ी माँगने को ‘हल्की बात’ मान लें और ‘सॉरी’ बस ऐसे ही बोल दें, लेकिन इसका वाकई में गहरा असर होता है। अध्ययन बताते हैं कि जब कोई व्यक्ति अपनी गलती के लिए माफ़ी माँगता है, तो जिस व्यक्ति से माफ़ी मांगी जाती है, उसे ज़्यादा अच्छा महसूस होता है। और तो और, इस बात की संभावना भी काफी बढ़ जाती है कि भविष्य में वे माफ़ी माँगने वाले व्यक्ति के साथ दोबारा सामान्य व्यवहार करें या सहयोग करें।

माफ़ी को ‘असरदार’ कैसे बनाएं?

रिसर्च के अनुसार, अपनी माफ़ी को ज़्यादा असरदार और प्रभावशाली बनाने का एक तरीका यह है कि उसे थोड़ा ‘महँगा’ (Costly) बनाया जाए। यहां ‘महँगा’ होने का मतलब है कि माफ़ी माँगने वाला इसके लिए कुछ कीमत चुकाने को तैयार हो – चाहे वो पैसे खर्च करना हो, अतिरिक्त प्रयास करना हो, या समय देना हो। जब आप माफ़ी के लिए कुछ लागत उठाने को तैयार होते हैं, तो आपकी माफ़ी को ज़्यादा गंभीरता से लिया जाता है और स्वीकार किया जाता है।

माफ़ी में शब्दों की लंबाई क्यों है अहम?

साल 2009 में हुई एक रिसर्च में यह बात सामने आई थी कि लोग उस तरह की माफ़ी से ज़्यादा संतुष्ट होते हैं जिसके लिए माफ़ी माँगने वाले को कुछ ‘कीमत’ चुकानी पड़ती है। लेकिन कीमत चुकाने का मतलब सिर्फ पैसा या समय ही नहीं है। शब्दों का चुनाव और उन्हें बोलने या लिखने का तरीका भी एक तरह का ‘प्रयास’ है।

किसी शब्द की लंबाई और उसका कितना आम (Common) होना, इस बात पर असर डालता है कि उसे कहना या लिखना कितना मुश्किल है। लंबे शब्दों को ज़्यादा सोच-समझकर चुनना पड़ता है। जो शब्द बहुत ज़्यादा इस्तेमाल नहीं होते (असामान्य शब्द), उन्हें याद रखना या सही से बोलना थोड़ा ज़्यादा मुश्किल होता है। तो क्या इसका मतलब है कि अगर आप अपनी माफ़ी में ऐसे ‘मुश्किल’ शब्द इस्तेमाल करते हैं, तो वो ज़्यादा सच्ची मानी जाएगी?

रिसर्च बताती है कि हां, कुछ हद तक ऐसा है, लेकिन यह ‘मुश्किल’ किसके लिए है, यह मायने रखता है। लंबे शब्द जो बहुत असामान्य नहीं होते, उन्हें समझना आमतौर पर कठिन नहीं होता। बल्कि वे ज़्यादा विशिष्ट (Specific) हो सकते हैं, जिससे बात ज़्यादा साफ होती है। तो एक समझदार व्यक्ति माफ़ी माँगते समय ऐसे लंबे शब्द चुन सकता है जो उसके लिए कहना थोड़ा ज़्यादा प्रयास का काम हो, लेकिन सुनने वाले के लिए समझना आसान हो।

रिसर्च के नतीजे क्या कहते हैं?

इस सवाल की पड़ताल करने के लिए रिसर्चर ने दो अलग-अलग अध्ययन किए। एक अध्ययन में, मशहूर हस्तियों और आम लोगों के ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर किए गए माफ़ी वाले संदेशों का विश्लेषण किया गया। इन संदेशों की तुलना उन्हीं लोगों के अन्य सामान्य ट्वीट्स से की गई। नतीजे बताते हैं कि माफ़ी वाले ट्वीट्स में इस्तेमाल किए गए शब्द, आम ट्वीट्स के मुकाबले औसतन ज़्यादा लंबे थे।

दूसरे अध्ययन में, लोगों से कुछ वाक्य पढ़ने या सुनने को कहा गया। इन वाक्यों का मतलब एक ही था, लेकिन उनमें इस्तेमाल किए गए शब्दों की लंबाई या उनका कितना आम होना अलग-अलग था।

जैसे, इन उदाहरणों को देखें:

  • “मेरा काम ये नहीं दिखाता कि मैं कौन हूँ।” (छोटे, आम शब्द)

  • “मेरा कार्य मेरे वास्तविक स्वरूप को नहीं दर्शाता।” (थोड़े लंबे, कम आम शब्द)

  • “मेरा कार्य मेरे वास्तविक चरित्र को नहीं दर्शाता।” (लंबे, कम आम शब्द)

लोगों से पूछा गया कि उन्हें इनमें से कौन सा वाक्य सबसे ज़्यादा ईमानदारी से माफ़ी माँगने वाला लगा। नतीजों ने साफ़ दिखाया कि प्रतिभागियों ने उन वाक्यों को ज़्यादा सच्चा माना जिनमें लंबे शब्दों का इस्तेमाल हुआ था। हालांकि, शब्द का ‘कितना आम’ होना, माफ़ी की सचाई पर ज़्यादा असर नहीं डाल रहा था।

तो, माफ़ी माँगते समय लंबे शब्द चुनें!

इन दोनों अध्ययनों के नतीजे मिलकर एक अहम बात बताते हैं: लोग जब दिल से माफ़ी माँगते हैं, तो वे जाने-अनजाने में लंबे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। और सुनने वाले लोग भी लंबे शब्दों वाली माफ़ी को ज़्यादा गंभीर, ज़्यादा प्रयास वाली, और इसीलिए ज़्यादा सच्ची मानते हैं।

सीधे शब्दों में कहें तो, यह रिसर्च दिखाती है कि हम सिर्फ शब्दों के अर्थ से ही नहीं, बल्कि शब्दों के रूप (जैसे उनकी लंबाई) से भी अपना संदेश सामने वाले तक पहुंचाते हैं। और संदर्भ के हिसाब से शब्द का रूप भी एक नया मतलब ले लेता है। यानी, ‘चरित्र’ जैसे शब्द का आम तौर पर माफ़ी माँगने से कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन माफ़ी माँगने के संदर्भ में, इस लंबे शब्द का इस्तेमाल शायद उस अतिरिक्त ‘प्रयास’ को दिखाता है जो आप अपनी गलती स्वीकार करने और पछतावा जताने में लगा रहे हैं, और इसी प्रयास को सामने वाला ‘सचाई’ के तौर पर समझता है।

तो अगली बार जब आपको किसी से माफ़ी माँगनी हो, तो सिर्फ ‘सॉरी’ बोलकर आगे न बढ़ें। अपनी बात को समझाने के लिए थोड़े ज़्यादा सोचे-समझे और शायद थोड़े लंबे शब्दों का इस्तेमाल करें। यह रिसर्च बताती है कि ऐसा करने से आपकी माफ़ी ज़्यादा असरदार होगी और सामने वाला आपके पछतावे को बेहतर ढंग से समझ पाएगा।