Black Rain After Nuclear Attack: जब भी परमाणु हथियारों की बात होती है, तो कई सवाल मन में आते हैं। खासकर भारत और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के बीच तनाव के माहौल में यह चिंता और बढ़ जाती है। क्या आपने कभी सोचा है कि परमाणु बम फटने के बाद अक्सर बारिश क्यों होती है, जिसे ‘काली बारिश’ (Black Rain) भी कहा जाता है? जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में हुए हमलों के बाद भी ऐसा हुआ था। आइए, जानते हैं इसके पीछे का डरावना विज्ञान।
विस्फोट की प्रचंड गर्मी और ‘अग्नि बादल’
दरअसल, जब कोई परमाणु बम फटता है, तो अविश्वसनीय रूप से भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है। इससे तापमान लाखों डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इस प्रचंड गर्मी से जमीन पर मौजूद हर चीज भाप बन जाती है या जलकर राख हो जाती है। एक बहुत बड़ा अग्नि का गोला (fireball) बनता है, जो तेजी से ऊपर की ओर उठता है।
धूल, मलबा और राख खींचता है ऊपर
यह अग्नि का गोला अपने साथ जमीन से धूल, मिट्टी, मलबा और धुएं के कणों को भी खींच लेता है। यह सब कुछ मिलकर एक विशाल मशरूम के आकार का बादल बनाता है, जिसे ‘मशरूम क्लाउड’ भी कहते हैं।
ऊंचाई पर बनता है खतरनाक बादल
यह बादल वायुमंडल में बहुत ऊंचाई तक चला जाता है, कई किलोमीटर ऊपर। इस बादल में न सिर्फ परमाणु विस्फोट से निकले रेडियोधर्मी कण होते हैं, बल्कि जमीन से खींची गई धूल, राख और बड़ी मात्रा में जलवाष्प भी होती है।
रेडियोधर्मी कण बनते हैं ‘संघनन केंद्र’
अब यहां आती है बारिश की बात। इस बादल में मौजूद धूल और रेडियोधर्मी कण ‘संघनन केंद्र’ (condensation nuclei) का काम करते हैं। यानी, हवा में मौजूद जलवाष्प इन कणों के चारों ओर इकट्ठा होने लगती है और पानी की छोटी-छोटी बूंदों में बदल जाती है। सामान्य बारिश में यह काम धूल के सामान्य कण या समुद्री नमक के कण करते हैं।
और फिर होती है ‘काली बारिश’
जब ये बूंदें काफी बड़ी हो जाती हैं, तो बारिश के रूप में नीचे गिरती हैं। लेकिन यह सामान्य बारिश नहीं होती। क्योंकि ये बूंदें रेडियोधर्मी कणों के साथ मिलकर बनी होती हैं, इसलिए यह बारिश बेहद खतरनाक होती है। इसमें रेडियोएक्टिविटी होती है। धूल और धुएं के कारण इसका रंग अक्सर काला या गहरा होता है, इसीलिए इसे ‘काली बारिश’ (Black Rain) कहते हैं।
हिरोशिमा और नागासाकी का खौफनाक अनुभव
हिरोशिमा और नागासाकी में हुए हमलों के बाद भी ‘काली बारिश’ हुई थी। इस बारिश में भीगने या इसका पानी पीने से लोग गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे। इससे त्वचा जल जाती है और शरीर के अंदरूनी अंग भी खराब हो सकते हैं, जिससे रेडिएशन सिकनेस और यहां तक कि मौत भी हो सकती है।
न्यूक्लियर विंटर का खतरा
इतना ही नहीं, अगर मान लीजिए कि दुनिया में कई जगहों पर एक साथ परमाणु हमले होते हैं, तो इन विस्फोटों से निकलने वाले धूल और धुएं के विशाल बादल सूरज की रोशनी को धरती तक पहुंचने से रोक सकते हैं। इससे धरती का तापमान बहुत गिर सकता है, जिसे ‘न्यूक्लियर विंटर’ (Nuclear Winter) कहा जाता है। यह पूरी पृथ्वी के लिए एक और भयानक खतरा है।
कुल मिलाकर, परमाणु हमला सिर्फ विस्फोट का ही कहर नहीं बरपाता, बल्कि उसके बाद होने वाली बारिश और अन्य चीजें भी उतनी ही जानलेवा होती हैं। यह इंसानी इतिहास के सबसे विनाशकारी हथियारों में से एक है, और इसका इस्तेमाल किसी भी सूरत में पूरी मानवता के लिए विनाशकारी साबित होगा।