Electoral Reforms

Electoral Reforms: 10% वोट भी न मिलें तो सांसद/विधायक कैसे? निर्विरोध चुनाव पर सुप्रीम कोर्ट का सरकार से तीखा सवाल, पूछा – क्या ये सही है?

Electoral Reforms :  सोचिए, आपके इलाके में चुनाव हो, लेकिन मैदान में सिर्फ एक ही उम्मीदवार खड़ा हो। नतीजा? बिना वोट डाले, बिना आपकी राय जाने, उसे जीता हुआ मान लिया जाता है! क्या यह आपके वोट देने के अधिकार का हनन नहीं है? क्या ऐसे व्यक्ति को आपका प्रतिनिधि माना जा सकता है, जिसे शायद 10% लोग भी पसंद न करते हों?

बस इन्हीं सवालों को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने एक गंभीर मुद्दा उठाया है। कोर्ट ने उस कानून पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है, जिसके तहत अकेले उम्मीदवार को निर्विरोध निर्वाचित (Uncontested Winner) घोषित कर दिया जाता है।

क्या है पूरा मामला और क्यों उठा ये सवाल?

एक संस्था ‘विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी’ ने 2024 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की है। इस याचिका में जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 53(2) को चुनौती दी गई है। यही वो धारा है जो कहती है कि अगर चुनाव में कोई दूसरा उम्मीदवार है ही नहीं, तो अकेले उम्मीदवार को बिना वोटिंग के ही विजेता मान लिया जाएगा।

याचिकाकर्ता की दलीलें:

  • NOTA का विकल्प: याचिकाकर्ता के वकील अरविंद दातार का कहना है कि अब मतदाताओं के पास NOTA (None of the Above – इनमें से कोई नहीं) का विकल्प है। भले ही NOTA को ज़्यादा वोट मिलने पर दोबारा चुनाव नहीं होता, लेकिन यह विकल्प दिखाता है कि लोग उम्मीदवार को नकार भी सकते हैं।

  • वोट का अधिकार: सबसे बड़ी बात, मतदाताओं को उनके वोट डालने के मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, भले ही मैदान में एक ही प्रत्याशी क्यों न हो। चुनाव होना चाहिए ताकि लोग अपनी पसंद (या नापसंद NOTA के ज़रिए) ज़ाहिर कर सकें।

  • सिर्फ लोकसभा नहीं, विधानसभा में भी: दातार ने कोर्ट को बताया कि ऐसा सिर्फ लोकसभा ही नहीं, बल्कि विधानसभा चुनावों में भी होता है, जहां लोग बिना वोटिंग के विधायक बन जाते हैं।

चुनाव आयोग का विरोध:

चुनाव आयोग ने इस याचिका का विरोध किया है। आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह मांग अनावश्यक और अव्यवहारिक है। उन्होंने NOTA को भी एक “विफल विचार” बताया और कहा कि अब तक लोकसभा के इतिहास में सिर्फ 9 लोग ही निर्विरोध चुने गए हैं (मतलब यह बहुत आम नहीं है)।

सुप्रीम कोर्ट की गंभीर चिंता:

जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने इस मामले पर गहरी चिंता जताई:

  • दबाव का डर: जजों ने कहा कि ऐसी स्थिति भी हो सकती है जहां किसी दबंग उम्मीदवार के डर से कोई दूसरा व्यक्ति पर्चा ही न भरे। ऐसे में क्या बिना लोगों को वोट का मौका दिए, उसे जीता हुआ मान लेना सही है?

  • लोकतंत्र का सवाल: जस्टिस सूर्य कांत ने कहा, “भारत में एक मजबूत और उच्चस्तरीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है। ऐसे में कम से कम यह तो देखा जाना चाहिए कि किसी उम्मीदवार को कितने लोग समर्थन देते हैं।”

  • सबसे बड़ा सवाल: कोर्ट ने पूछा, “अगर किसी उम्मीदवार को 10 प्रतिशत लोग भी वोट नहीं देते, तो उसे संसद (या विधानसभा) में भेजना क्या सही होगा?”

सरकार का पक्ष और कोर्ट का रुख:

केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट नया कानून नहीं बना सकता। अगर ऐसी कोई व्यवस्था लानी है, तो यह काम संसद का है, जो काफी विचार-विमर्श के बाद कानून में बदलाव कर सकती है।

इस पर कोर्ट ने साफ किया कि वह कोई आदेश नहीं दे रहा है, बल्कि इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सिर्फ सरकार की राय जानना चाहता है। कोर्ट ने फिलहाल सुनवाई टाल दी है।

आगे क्या?

यह मामला अब सरकार के जवाब पर टिका है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए सवाल बेहद महत्वपूर्ण हैं और भारत के लोकतंत्र के भविष्य से जुड़े हैं। क्या वाकई बिना वोटिंग के किसी को हमारा प्रतिनिधि माना जाना चाहिए? क्या NOTA होने के बावजूद वोटिंग न कराना सही है? इन सवालों का जवाब आने वाले समय में मिलेगा।