Rent Agreement Rule : चाहे आप किराए पर घर ले रहे हों या दुकान, एक चीज़ लगभग तय है – रेंट एग्रीमेंट! और अक्सर आपने देखा होगा कि यह एग्रीमेंट पूरे साल यानी 12 महीने का न होकर सिर्फ 11 महीने का होता है। कभी सोचा है आखिर ऐसा क्यों? साल में तो 12 महीने होते हैं, फिर ये एक महीने की कटौती क्यों? क्या इसके पीछे कोई खास लॉजिक है या बस यूं ही चला आ रहा है?
आजकल किराए पर रहना या दुकान चलाना बहुत आम बात हो गई है। नई जगह पर शिफ्ट होने वाले ज़्यादातर लोग शुरुआत में किराए का ही आसरा लेते हैं। इसके लिए मकान मालिक और किराएदार के बीच एक कानूनी कागज़ात तैयार होता है, जिसे हम रेंट एग्रीमेंट या किरायानामा कहते हैं। यह न सिर्फ किराए की रकम तय करता है, बल्कि दोनों पक्षों की जिम्मेदारियां भी बताता है। लेकिन ये 11 महीने वाला चक्कर अक्सर लोगों के मन में सवाल खड़े कर देता है।
तो चलिए, आज इसी गुत्थी को सुलझाते हैं और जानते हैं 11 महीने वाले इस ‘किस्से’ की पूरी कहानी।
पहले समझें: क्या होता है रेंट एग्रीमेंट?
सीधे शब्दों में कहें तो यह मकान मालिक और किराएदार के बीच एक लिखित समझौता है। इसमें साफ-साफ लिखा होता है:
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किराया कितना होगा और कब देना होगा?
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कितने समय के लिए प्रॉपर्टी किराए पर दी जा रही है?
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सिक्योरिटी डिपॉजिट कितना है?
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घर/दुकान की देखभाल कौन और कैसे करेगा?
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बिजली-पानी जैसे बिल कौन भरेगा?
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अन्य ज़रूरी शर्तें और नियम।
यह एक ज़रूरी दस्तावेज़ है जो दोनों को किसी भी तरह के झगड़े या गलतफहमी से बचाता है और उनके अधिकारों की रक्षा करता है।
तो फिर, 11 महीने ही क्यों? असली वजहें ये हैं:
जानकारों और प्रॉपर्टी एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इसके पीछे मुख्य रूप से दो बड़ी वजहें हैं:
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स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन का झंझट:
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हमारे देश में एक कानून है – रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908। इस कानून की धारा 17 कहती है कि अगर कोई प्रॉपर्टी एक साल या उससे ज़्यादा समय के लिए किराए पर दी जाती है (यानी लीज़ पर), तो उस एग्रीमेंट का रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य है।
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रजिस्ट्रेशन करवाने में सरकार को स्टाम्प ड्यूटी चुकानी पड़ती है, जिसका खर्चा प्रॉपर्टी की वैल्यू और किराए के हिसाब से अच्छा-खासा (सैकड़ों से हज़ारों रुपये तक) हो सकता है।
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बस, इसी खर्चे और रजिस्ट्रेशन की लंबी प्रक्रिया से बचने के लिए लोग चालाकी से एग्रीमेंट 11 महीने का बनवाते हैं। क्योंकि 11 महीने (यानी एक साल से कम) के एग्रीमेंट के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य नहीं होता। इससे स्टाम्प ड्यूटी का पैसा बच जाता है।
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कानूनी पचड़ों से बचाव:
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वकीलों का मानना है कि अगर रेंट एग्रीमेंट की अवधि लंबी (एक साल या उससे ज़्यादा) होती है, तो कानून कई मामलों में किराएदार के पक्ष में ज़्यादा झुक जाता है।
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ऐसे में, मकान मालिक के लिए बीच में किराया बढ़ाना या किसी जायज़ वजह (जैसे खुद के रहने की ज़रूरत) से भी किराएदार से घर खाली करवाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है।
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इसलिए, मकान मालिक कानूनी झंझटों से बचने और थोड़ी ज़्यादा सहूलियत रखने के लिए छोटी अवधि (11 महीने) का एग्रीमेंट पसंद करते हैं।
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किसे होता है ज़्यादा फायदा? मकान मालिक या किराएदार?
देखा जाए तो 11 महीने का एग्रीमेंट दोनों के लिए कुछ हद तक फायदेमंद हो सकता है:
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मकान मालिक के लिए:
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स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन का खर्चा बचता है।
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कानूनी रूप से ज़्यादा झंझट नहीं होता।
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हर 11 महीने बाद एग्रीमेंट रिन्यू करते समय किराया थोड़ा बढ़ाने का विकल्प रहता है (अगर एग्रीमेंट में क्लॉज हो, आमतौर पर 10% तक)।
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किराएदार के लिए:
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उसे भी रजिस्ट्रेशन के खर्चे में हिस्सा नहीं देना पड़ता।
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वह किसी लंबे बंधन में नहीं बंधता। अगर उसे 11 महीने बाद घर/दुकान पसंद नहीं आती, किराया ज़्यादा लगता है, या उसे जगह बदलनी है, तो वह आसानी से बिना किसी बड़ी कानूनी अड़चन के जगह बदल सकता है।
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तो अब आप समझ गए होंगे कि रेंट एग्रीमेंट अक्सर 11 महीने का क्यों होता है। यह मुख्य रूप से स्टाम्प ड्यूटी बचाने, कानूनी प्रक्रियाओं को सरल रखने और दोनों पक्षों (खासकर मकान मालिक) को थोड़ी ज़्यादा सहूलियत और लचीलापन देने का एक व्यावहारिक तरीका है। यह सालों से चला आ रहा है और ज़्यादातर लोगों को सूट करता है, इसलिए यह इतना आम है।