Supreme Court

Supreme Court – पैतृक संपत्ति पर बेटे का कितना हक़? सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला – पिता बेच सकता है ऐसी प्रॉपर्टी, बेटा नहीं रोक पाएगा

Supreme Court – क्या बेटा अपने पिता को पुरखों की संपत्ति बेचने से रोक सकता है? यह सवाल कई परिवारों में उठता है। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर एक बेहद अहम और स्पष्ट फैसला सुनाया है, जिससे करोड़ों लोगों पर असर पड़ सकता है।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक दशकों पुराने संपत्ति विवाद को निपटाते हुए साफ कर दिया है कि अगर पिता, परिवार के मुखिया (कर्ता) के तौर पर, पारिवारिक कर्ज चुकाने या किसी अन्य ‘कानूनी ज़रूरत’ (Legal Necessity) के लिए पैतृक संपत्ति बेचता है, तो बेटा या परिवार का कोई अन्य सदस्य उस बिक्री को चुनौती नहीं दे सकता।

क्यों आया यह फैसला?

यह मामला 1964 में शुरू हुआ था। एक पिता (प्रीतम सिंह) ने परिवार पर चढ़े कर्ज चुकाने और खेती सुधारने के लिए पैसों की ज़रूरत होने पर अपनी कुछ पैतृक जमीन बेच दी थी। उनके बेटे (केहर सिंह) ने यह कहते हुए कोर्ट में चुनौती दी कि वह भी संपत्ति का हिस्सेदार है और उसकी मर्ज़ी के बिना पिता ज़मीन नहीं बेच सकते।

मामला निचली अदालत से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। इस दौरान पिता और पुत्र दोनों का निधन हो गया, लेकिन उनके वारिसों ने केस जारी रखा। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस ए.एम. सप्रे और एस.के. कौल की पीठ ने हिंदू कानून के प्रावधानों (विशेषकर अनुच्छेद 254) का हवाला देते हुए कहा कि ‘कर्ता’ को कानूनी ज़रूरत पड़ने पर पैतृक संपत्ति बेचने या गिरवी रखने का पूरा अधिकार है, भले ही उसमें बेटे या पोते का हिस्सा क्यों न हो। शर्त बस इतनी है कि जिस कर्ज के लिए संपत्ति बेची जा रही है, वह पैतृक हो और किसी गलत या गैर-कानूनी काम के लिए न लिया गया हो।

किन ज़रूरतों के लिए पिता बेच सकता है पैतृक संपत्ति?

सुप्रीम कोर्ट और हिंदू कानून के अनुसार, निम्नलिखित स्थितियों को ‘कानूनी ज़रूरत’ माना जा सकता है, जिनके लिए कर्ता पैतृक संपत्ति बेच सकता है:

  1. पारिवारिक कर्ज चुकाना: जो अनैतिक या अवैध न हो।

  2. सरकारी बकाया चुकाना: संपत्ति पर लगे टैक्स या अन्य सरकारी देनदारी।

  3. परिवार के सदस्यों का भरण-पोषण: उनकी बुनियादी ज़रूरतें पूरी करना।

  4. शादी-ब्याह का खर्च: परिवार के बेटे-बेटियों की शादी का वाजिब खर्च।

  5. पारिवारिक समारोह या अंतिम संस्कार: ज़रूरी धार्मिक या सामाजिक खर्च।

  6. संपत्ति से जुड़े मुकदमों का खर्च: पैतृक संपत्ति को बचाने के लिए कानूनी लड़ाई का खर्च।

  7. गंभीर आपराधिक मुकदमों में बचाव: अगर परिवार के मुखिया पर कोई गंभीर (गैर-अनैतिक) आपराधिक मामला हो।

  8. पारिवारिक व्यवसाय चलाना या बचाना: अगर बिज़नेस परिवार की आय का स्रोत हो।

क्या है इसका मतलब?

इस फैसले का सीधा मतलब है कि अगर पिता साबित कर देता है कि उसने संपत्ति ऊपर बताई गई किसी वाजिब ‘कानूनी ज़रूरत’ के लिए बेची है, तो बेटा सिर्फ हिस्सेदारी का दावा करके उस बिक्री को रोक या रद्द नहीं करवा सकता। यह फैसला पारिवारिक संपत्ति के प्रबंधन और बिक्री से जुड़े विवादों में मील का पत्थर साबित हो सकता है।