Supreme Court Decision : ज़मीन-जायदाद के झगड़े अक्सर दिलों में कड़वाहट घोल देते हैं और कई बार ये विवाद इतने बढ़ जाते हैं कि मामला अदालतों की चौखट तक पहुँच जाता है। निचली अदालतों से शुरू हुई लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचते-पहुँचते सालों गुज़र जाते हैं। लेकिन जब इन लंबे इंतज़ार के बाद फैसला आता है, तो वह कई बार इतिहास रच देता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे ही मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जो बेटियों के अधिकारों के लिए एक बड़ी जीत है।
क्या कहता है कानून?
हमारे देश का कानून साफ कहता है कि पिता की संपत्ति पर बेटे और बेटी, दोनों का बराबर का हक है। किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। फिर भी, ज़मीनी हकीकत ये है कि अक्सर बेटियों को अपने हक के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है।
4 दशक की लड़ाई, और बेटियों को मिला न्याय
ताज़ा मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फैसला सुनाते हुए चार दशक (40 साल) से चल रहे विवाद का अंत कर दिया है। कोर्ट ने बेटियों को उनके पिता की संपत्ति पर अधिकार दिलाया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया और उसमें दखल देने से साफ इनकार कर दिया।
क्या था पूरा मामला?
यह मामला उत्तर प्रदेश का है। भुनेश्वर सिंह की दो बेटियां थीं – शिव कुमारी देवी और हरमुनिया। हरमुनिया की मृत्यु हो चुकी है। उनके पिता भुनेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद, अशोक कुमार नाम के एक व्यक्ति ने खुद को भुनेश्वर सिंह का गोद लिया हुआ बेटा (दत्तक पुत्र) बताते हुए उनकी संपत्ति पर दावा ठोक दिया। उसने इस दावे के समर्थन में एक गोद लेने का दस्तावेज़ (Adoption Deed) भी कोर्ट में पेश किया, जो कथित तौर पर 9 अगस्त 1967 का था।
क्यों खारिज हुआ ‘गोद लिए बेटे’ का दावा?
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अशोक कुमार के इस दावे और दस्तावेज़ को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने पाया कि:
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नियमों का पालन नहीं: गोद लेने की जो कानूनी प्रक्रिया होती है, उसका ठीक से पालन नहीं किया गया था।
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पत्नी की सहमति गायब: कानून के अनुसार, बच्चा गोद लेते समय व्यक्ति को अपनी पत्नी की सहमति लेना अनिवार्य होता है। इस मामले में, यह साबित नहीं हो पाया कि भुनेश्वर सिंह ने गोद लेते समय अपनी पत्नी की सहमति ली थी।
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नीयत पर सवाल: कोर्ट ने माना कि यह दस्तावेज़ शायद बेटियों को उनके पिता की संपत्ति के अधिकार से वंचित करने के इरादे से पेश किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट की मुहर
अशोक कुमार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 11 दिसंबर 2023 (या संबंधित तारीख) के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता (या संबंधित पीठ) की बेंच ने मामले की सुनवाई की और हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गोद लेने की प्रक्रिया में अनिवार्य शर्तों का पालन नहीं हुआ था, इसलिए उस दस्तावेज़ को वैध नहीं माना जा सकता।
आखिरकार बेटियों की जीत
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के साथ ही दशकों से चल रही कानूनी लड़ाई खत्म हो गई और बेटियों को आखिरकार उनके पिता की संपत्ति में उनका rightful हिस्सा मिल गया। यह फैसला एक बार फिर इस बात को पुख्ता करता है कि कानून की नज़र में बेटियां भी बेटों के बराबर हैं और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता, भले ही इसमें कितना भी समय क्यों न लग जाए।