Antim Sanskar Rituals :मरने के 3 दिन बाद क्यों उठाते हैं अस्थियां? जानें इस जरूरी रिवाज का गहरा रहस्य और महत्व, पंडित जी से समझें

Published On: April 15, 2025
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Antim Sanskar Rituals : जब कोई अपना इस दुनिया को अलविदा कह जाता है, तो हिंदू धर्म में कई रस्में निभाई जाती हैं ताकि उसकी आत्मा को शांति और मोक्ष मिल सके। 16 संस्कारों में से एक ‘अंतिम संस्कार’ के बाद सबसे महत्वपूर्ण रिवाजों में से एक है दाह संस्कार के तीसरे दिन अस्थियों (राख और हड्डियों के अवशेष) को इकट्ठा करना और फिर उन्हें पवित्र नदी में विसर्जित करना।

आखिर क्यों है ये रिवाज इतना ज़रूरी? क्यों तीसरे दिन ही अस्थियां चुनी जाती हैं? इसके पीछे क्या कारण और महत्व छिपा है? आइए, भोपाल के जाने-माने ज्योतिषी और वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से जानते हैं इसके गहरे मायने।

1. आत्मा की शांति और मोक्ष का मार्ग (धार्मिक कारण):

सबसे प्रमुख धार्मिक मान्यता यह है कि पवित्र नदियों (जैसे गंगा, यमुना, नर्मदा आदि) में अस्थियां प्रवाहित करने से दिवंगत आत्मा को ‘मोक्ष’ की प्राप्ति होती है, यानी वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाती है। गरुड़ पुराण जैसे पवित्र ग्रंथों में भी उल्लेख है कि यदि विधि-विधान से अस्थि विसर्जन न किया जाए, तो आत्मा को पूर्ण शांति नहीं मिलती और वह प्रेत योनि में भटक सकती है। इसीलिए परिवार वाले पूरी श्रद्धा और विधि के साथ यह संस्कार करते हैं।

2. आगे की यात्रा में सहारा (आध्यात्मिक मान्यता):

हिंदू धर्म सिखाता है कि मृत्यु केवल शरीर की होती है, आत्मा अमर है। माना जाता है कि विधि-विधान से अस्थि विसर्जन करने से आत्मा को अपनी आगे की आध्यात्मिक यात्रा में शांति और सहारा मिलता है। यह उसे सांसारिक मोह-माया के बंधनों से मुक्त होने में मदद करता है। पिंडदान और तर्पण जैसे कर्म भी इसी उद्देश्य से किए जाते हैं, ताकि पितरों (पूर्वजों) की आत्मा तृप्त हो और उनका आशीर्वाद परिवार पर बना रहे।

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3. भावनात्मक जुड़ाव और मानसिक शांति (भावनात्मक कारण):

अपनों को खोने का दुख बहुत गहरा होता है। अस्थि संग्रह और विसर्जन की ये रस्में निभाने से शोकाकुल परिवार वालों को एक तरह का मानसिक और भावनात्मक संबल मिलता है। उन्हें यह तसल्ली होती है कि उन्होंने दिवंगत आत्मा की शांति और सद्गति के लिए अपना अंतिम कर्तव्य निभाया है। यह दुख और शोक से उबरने की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक कदम भी होता है।

4. प्रकृति से जुड़ाव (वैज्ञानिक/पर्यावरणीय दृष्टिकोण):

अगर इसे अलग नज़रिए से देखें, तो यह प्रकृति में संतुलन बनाए रखने की एक प्रक्रिया भी है। अग्नि संस्कार के बाद बचे अवशेष (मुख्य रूप से कैल्शियम फॉस्फेट) पृथ्वी के ही तत्व हैं। इन्हें बहते जल में प्रवाहित करना, एक तरह से पंचतत्वों से बने शरीर के अवशेषों को वापस प्रकृति में ही मिला देना है। यह स्वच्छता और दिवंगत आत्मा के प्रति सम्मान प्रकट करने का भी एक तरीका है।

कब और कैसे इकट्ठा करते हैं अस्थियां?

  • समय: परंपरा के अनुसार, दाह संस्कार के तीसरे दिन सुबह के समय अस्थियां चुनी जाती हैं। कुछ मान्यताओं में दसवें दिन तक भी अस्थियां एकत्र करने का विधान है, लेकिन तीसरा दिन सबसे उपयुक्त माना जाता है।

  • प्रक्रिया: श्मशान घाट पर जाकर अग्नि शांत होने के बाद, राख से हड्डियों के छोटे-छोटे टुकड़ों को चुना जाता है। इन्हें गंगाजल या दूध से पवित्र करके, एक साफ कपड़े में बांधकर मिट्टी या धातु के कलश (बर्तन) में रखा जाता है।

  • विसर्जन: इसके बाद परिवार वाले किसी शुभ दिन और मुहूर्त देखकर, पिंडदान और तर्पण करने के पश्चात इन अस्थियों को किसी पवित्र नदी या तीर्थ स्थान पर पूरे सम्मान के साथ विसर्जित कर देते हैं।

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इस प्रकार, अंतिम संस्कार के बाद तीसरे दिन अस्थियां इकट्ठा करना केवल एक धार्मिक रिवाज ही नहीं, बल्कि आत्मा की शांति, परिवार की भावनात्मक संतुष्टि, पितरों के प्रति सम्मान और आध्यात्मिक मान्यताओं से जुड़ा एक गहरा और महत्वपूर्ण संस्कार है।

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