Stem Cell Transplant

Stem Cell Transplant: मेडिकल जगत में क्रांति! दुनिया में पहली बार स्पर्म बनाने वाली कोशिकाएं इंसान में ट्रांसप्लांट, बांझपन से जूझ रहे पुरुषों के लिए जगी उम्मीद की नई किरण

Stem Cell Transplant: सोचिए, बचपन में हुए कैंसर के इलाज ने किसी को पिता बनने की क्षमता से हमेशा के लिए महरूम कर दिया हो… लेकिन अब शायद ऐसा न हो! अमेरिका में डॉक्टरों ने चिकित्सा जगत में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए दुनिया में पहली बार किसी इंसान में स्पर्म (शुक्राणु) बनाने वाली स्टेम सेल का सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट किया है। यह उस 20 साल के युवक के लिए उम्मीद की किरण है, जो बचपन में हुए कैंसर के इलाज के कारण पिता बनने की क्षमता खो चुका था।

क्या थी पूरी कहानी?

इस 20 वर्षीय युवक को बचपन में हड्डी के कैंसर का पता चला था। जान बचाने के लिए उसे कीमोथेरेपी लेनी पड़ी। कीमोथेरेपी ने कैंसर को तो हरा दिया, लेकिन इसका एक गंभीर साइड इफेक्ट हुआ – युवक अज़ूस्पर्मिया (Azoospermia) का शिकार हो गया। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें पुरुष के वीर्य (Semen) में शुक्राणु बिल्कुल नहीं बनते, जिस वजह से वह प्राकृतिक रूप से पिता नहीं बन सकता था।

कैसे हुआ यह चमत्कारी ट्रांसप्लांट?

सौभाग्य से, डॉक्टरों ने युवक की कीमोथेरेपी शुरू होने से पहले ही, उसके बचपन में ही, उसकी कुछ स्पर्म बनाने वाली स्टेम कोशिकाएं (Spermatogonial Stem Cells – SSCs) निकालकर सुरक्षित रूप से फ्रीज़ कर दी थीं। ये वही कोशिकाएं हैं जो जन्म के समय मौजूद होती हैं और युवावस्था में सक्रिय होकर शुक्राणु बनाना शुरू करती हैं।

अब, सालों बाद, डॉक्टरों ने उन्हीं फ्रीज़ की हुई स्टेम कोशिकाओं को पिघलाकर, अल्ट्रासाउंड-गाइडेड सुई की मदद से बेहद सावधानीपूर्वक युवक के टेस्टिस (अंडकोष) में वापस ट्रांसप्लांट कर दिया। यह प्रक्रिया अब तक केवल जानवरों पर ही आजमाई गई थी, इंसानों पर यह पहला परीक्षण है।

क्या रहे नतीजे और आगे क्या?

हालांकि ट्रांसप्लांट को अभी कुछ ही समय हुआ है और युवक के वीर्य में फिलहाल शुक्राणु नहीं पाए गए हैं, लेकिन शुरुआती संकेत सकारात्मक हैं। अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट बताती है कि ट्रांसप्लांट से कोई नुकसान नहीं हुआ है और युवक के हार्मोन का स्तर सामान्य है। डॉक्टर बेहद आशान्वित हैं। लगभग छह महीने बाद दोबारा जांच की जाएगी यह देखने के लिए कि क्या ट्रांसप्लांट की गई स्टेम कोशिकाओं ने अपना काम करना और शुक्राणु बनाना शुरू कर दिया है।

किनके लिए वरदान साबित हो सकती है यह तकनीक?

अगर यह तकनीक सुरक्षित और प्रभावी साबित होती है, तो यह उन लाखों पुरुषों के लिए वरदान बन सकती है जो बांझपन से जूझ रहे हैं, खासकर:

  1. बचपन में कैंसर का इलाज करा चुके पुरुष: जिन्हें कीमोथेरेपी या रेडिएशन के कारण अज़ूस्पर्मिया हो गया।

  2. आनुवंशिक या अन्य कारणों से टेस्टिकुलर फेलियर के शिकार पुरुष।

भले ही बचपन में बहुत कम मात्रा में स्टेम सेल ली गई हों, जिससे शायद बहुत ज़्यादा शुक्राणु न बनें, फिर भी यह उम्मीद बाकी है। अगर प्राकृतिक गर्भाधान संभव न भी हो, तो इन बने हुए शुक्राणुओं का इस्तेमाल IVF (इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन) जैसी सहायक तकनीकों में करके पिता बनने का सपना पूरा किया जा सकता है।

यह ट्रांसप्लांट चिकित्सा विज्ञान में एक मील का पत्थर है, जो भविष्य में पुरुष बांझपन के इलाज की दिशा बदल सकता है और अनगिनत लोगों के जीवन में खुशियाँ ला सकता है।