इतिहास– बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने देश के लिए संविधान लिखा और लोगों को उनके अधिकारों से परिचित करवाया। भीमराव अंबेडकर में कई लोग ईश्वर कहते हैं क्योंकि उन्होंने हर उस व्यक्ति के हक की बात की जिसका समाज मे शोषण हो रहा था।
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर कहते थे कि हिंदूओ को यह बात समझनी चाहिए कि वह भारत के बीमार लोग है और उन्हें ऐसी चीजें नही करनी चाहिए कि उनकी बीमारी से अन्य लोगो का स्वास्थ्य प्रभावित हो। जहां एक तरफ बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने देश के लिए महिलाओं के लिए, महिलाओं के हक के लिए, शोषितों के हक के लिए काम किया।
वही वह हिन्दू होने के बाद भी हिंदूओ की नीतियों का विरोध करते हैं। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर हिन्दू धर्म को एक बीमारी कहकर नवाजते थे। उन्होंने यह संकल्प लिया था कि वह जन्म से भले ही हिन्दू हो लेकिन वह हिन्दू बनकर मरना नही चाहते हैं।
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने यह विचार कर लिया की वह अब धर्म परिवर्तन करेंगे। उन्होंने कई धर्मो के विषय मे विचार किया जिंसमे से एक इस्लाम भी था। लेकिन उन्होंने इस्लाम को नही अपनाया।
अगर हम इस बात पर गौर करे की आखिर ऐसा क्या हुआ कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने इस्लाम क्यों नही अपनाया तो इसके पीछे इस्लाम धर्म के साथ जुड़ी कुरीतियां थी। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर इस्लाम को हिन्दू धर्म की प्रति कहते थे। वह कहते थे कि इस्लाम बिल्कुल हिन्दू धर्म की तरह ही है।
जानकारों का कहना है कि इस्लाम धर्म मे कई कुरीतियां है अंबेडकर हमेशा से कुरीतियों के खिलाफ रहे हैं। इसलिए अंबेडकर ने इस्लाम को अस्वीकार कर दिया और बौद्ध धर्म अपनाया। क्योंकि अंबेडकर का उद्देश्य सिर्फ धर्म परिवर्तन नही अपितु धर्म के नाम पर फैली कुरीतियों का त्याग करना है।
अंबेडकर का कहना था कि इस्लाम धर्म मे और हिन्दू धर्म में जातियों का बोलबाला है। जाति के आधार पर इन दोनों धर्मो में लोगो का शोषण किया जा रहा है। जिस कारण अंबेडकर को इन दोनों धर्मो से बैर था।
भीमराव अंबेडकर मानते थे कि दलितों की जो दशा है उसके लिए दास प्रथा काफी हद तक जिम्मेदार है. इस्लाम में दास प्रथा को खत्म करने के कोई खास प्रतिबद्धता नहीं दिखती है।